नवापारा-राजिम में गोवर्धन पूजा पर मंदिरों में लगा 56 भोग, भगवान राजीव लोचन का हुआ विशेष शृंगार, दर्शन के लिए उमड़े श्रद्धालु

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :– दो दिन दिपावली मानने के बाद 22 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा का पर्व अंचल में धूमधाम से मनाया गया। दो दिन अमावस्या तिथि होने के चलते गोवर्धन पूजा दिवाली के एक दिन बाद 22 अक्टूबर को मनाया गया। नगर सहित अंचल मे ग्रामीणों ने गाय और बैलों को नहला धूला कर उन्हे सजाया और पूजा अर्चना की। इसके बाद विभिन्न पकवानों से खिचड़ी बनाकर गौ माता को खिलाया।

गोवर्धन पूजा के पर्व पर नगर के श्री सत्यनारायण मंदिर, श्री राधाकृष्ण मंदिर एवं राजिम में भगवान श्री राजीव लोचन मंदिर में भगवान का विशेष शृंगार किया गया था। साथ ही सभी मंदिरों में लाइट और आम तोरण, रंगोली से विशेष सज्जा की गई थी।

गोवर्धन पूजा के बाद शाम को भगवान विष्णु के अवतारों की विशेष पूजा अर्चना कर भगवान को 56 भोग और अन्नकूट का भोग भी लगाया गया। शाम को भगवान के दर्शन के लिए श्रद्धालुओ का तांता सभी मंदिरों में लगा रहा। मंदिरों में खिचड़ी का प्रसाद भक्तों में बांटा गया। नगर के श्री राधाकृष्ण मंदिर में समिति की ओर से भंडारे का भी आयोजन किया गया। जिसमे हजारों भक्तों ने प्रसादी ग्रहण किया।

नवापारा नगर के यादव बंधु एवं अन्य समाज के लोगों द्वारा मड़ई एवं गाजे बाजे के साथ पारांपरिक दोहे और अखाड़ा का प्रदर्शन करते बस स्टैंड के पास सहाड़ा देव स्थल पहुंचे। यहाँ छत्तीसगढ़ झेरिया-यादव समाज द्वारा गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट पूजा कार्यक्रम आयोजित किया गया।
समाज के अनेक लोगों की उपस्थिति में सहाड़ा देव में भगवान श्री कृष्ण – गोपाल एवं मडाई बैराज का पूजा अर्चन कर गौ माता के गले में सोहाई बांधी गई । इस अवसर पर उपस्थित यादव समाज ने गणमान्य नागरिकों को अपनी शुभकामनाएं दी।
क्यों मनाते है गोवर्धन पूजा का पर्व

गोवर्धन पूजा का चलन द्वापर युग से बताया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार संसार में पहले इंद्र की पूजा होती थी । कृष्ण के कहने पर बृजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू की। इससे गुस्साए इंद्र ने तेज बारिश से पूरे राज्य को जलमग्न कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को कनिष्ठा अंगुली में उठाकर इंद्र के घमंड को चूर कर दिया और बारिश से लोगों को बचाया। सात दिन बाद इंद्र ने अपनी हार मान ली। तभी से गोवर्धन पर्वत, गाय व भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। साथ ही गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर भगवान कृष्ण की मूर्ति रखकर उसका अभिषेक करते हैं।
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