न्याय केवल प्रणालियों और प्रक्रियाओं से नहीं होता है; यह न्यायाधीश के अंतः करण से प्रवाहित होता है – मुख्य न्यायाधिपति

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :– छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी द्वारा सरगुजा संभाग के न्यायिक अधिकारियों के लिए एक दिवसीय संभागीय न्यायिक सेमिनार का आयोजन सर्किट हाउस, नए भवन, अम्बिकापुर के कॉन्फ्रेंस हॉल में किया गया। सेमिनार में सरगुजा संभाग के पाँच सिविल जिलों-अम्बिकापुर, बैकुंठपुर, जशपुर, बलरामपुर (रामानुजगंज), सूरजपुर- से 69 न्यायिक अधिकारियों ने सहभागिता की।

मुख्य अतिथि, माननीय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा, मुख्य न्यायाधिपति, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय एवं मुख्य संरक्षक, छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी ने सेमिनार का वर्चुअल उद्घाटन किया। यह शुभारंभ न्याय एवं विधिक ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक रहा। कार्यक्रम में माननीय न्यायमूर्ति राधाकिशन अग्रवाल, न्यायाधीश, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय और पोर्टफोलियो न्यायाधीश, जिला सूरजपुर, माननीय न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल, न्यायाधीश, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय और पोर्टफोलियो न्यायाधीश, जिला जशपुर, माननीय न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा, न्यायाधीश, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय और पोर्टफोलियो न्यायाधीश, जिला बलरामपुर-रामानुजगंज,, की वर्चुअल माध्यम से गरिमामय उपस्थिति रही ।

माननीय मुख्य न्यायाधिपति महोदय ने न्यायिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि न्यायपालिका हमारे संवैधानिक लोकतंत्र की आधारशिला है। न्यायाधीशों का आचरण, निर्णय और दृष्टिकोण ही न्याय की सार्वजनिक धारणा को आकार देता है। उन्होंने जोर दिया कि जिला न्यायपालिका बढ़ते प्रकरणों और विवादों की जटिलता जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है, जिसके लिए न्यायपालिका का ज्ञान-आधारित, नैतिक रूप से सुदृढ़ और संवेदनशील होना आवश्यक है।

अंतःकरण से प्रवाहित होता है

माननीय मुख्य न्यायाधिपति महोदय ने कहा कि “न्याय केवल प्रणालियों और प्रक्रियाओं से नहीं होता; यह न्यायाधीश के अंतःकरण से प्रवाहित होता है।” उन्होंने न्यायिक अधिकारियों से जनता के विश्वास का सम्मान करने और सत्यनिष्ठा, अनुशासन और न्यायिक नैतिकता बनाए रखने का आह्वान किया।

माननीय मुख्य न्यायाधिपति महोदय ने सभी न्यायिक अधिकारियों से कहा कि न्यायपालिका की सबसे बड़ी शक्ति जनता का विश्वास है। इस विश्वास का सम्मान करना न्यायाधीश का सर्वोच्च दायित्व है, जिसे सत्यनिष्ठा, अनुशासन और न्यायिक नैतिकता द्वारा निभाया जाना चाहिए। जब न्यायाधीश विधि के शासन और संविधान के मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहते हैं, तब न्यायपालिका दृढ़ता से खड़ी रहती है।

अंत में, माननीय मुख्य न्यायाधिपति महोदय ने कहा कि ऐसे सेमिनार समसामयिक विधिक मुद्दों पर विचार-विमर्श, अनुभवों के आदान-प्रदान तथा श्रेष्ठ प्रक्रियाओं को अपनाने का सुअवसर प्रदान करते हैं। इस सेमिनार में हुई चर्चा न्यायिक अधिकारियों की कार्यदक्षता को और बढ़ाएगी तथा उन्हें न्यायिक कार्य की जटिलताओं को प्रभावी ढंग से संभालने के लिए सक्षम बनाएगी।

कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल तथा रजिस्ट्री अधिकारीगण वर्चुअल उपस्थिति हुए। स्वागत उद्बोधन प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, अम्बिकापुर द्वारा दिया गया तथा परिचयात्मक वक्तव्य छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी की निदेशक द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का समापन प्रथम जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, अम्बिकापुर द्वारा दिए गए धन्यवाद प्रस्ताव से हुआ।

सरगुजा संभाग- अम्बिकापुर, बैकुंठपुर, जशपुर, बलरामपुर (रामानुजगंज) तथा सूरजपुर के कुल 69 न्यायिक अधिकारियों ने सहभागिता की।

प्रतिभागियों ने निम्नलिखित विषयों पर प्रस्तुतिकरण दिए-

1. अनुपस्थित अभियुक्त एवं नवीन संयोजित किये गए अभियुक्त-धारा 356 बीएनएसएस एवं धारा 358 बीएनएसएस के अंतर्गत विचारण के दौरान अनुपस्थित अभियुक्त के प्रक्रियागत अंतर्विरोध का विश्लेषण।

2. संविदा के विशिष्ट पालन का सिद्धांतः- विधि और प्रक्रिया, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का विशेष संदर्भ हो । 3. आदेश 7 नियम 10, सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत न्यायालय की सक्षमता का सिद्धांत, आदेश 7 नियम 11, सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत वादपत्र को आरंभमें ही अस्वीकार करने की शक्ति । 4. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सतेन्द्र कुमार अंतिल बनाम सी.बी.आई. और सिद्धार्थ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में जारी किए गए दिशानिर्देशों के संदर्भ में गिरफ्तारी, रिमांड और जमानत से संबंधित प्रावधान । 5. सिविल कारागार में गिरफ्तारी और निरोध द्वारा तथा संपत्ति की कुर्की द्वारा डिक्री का निष्पादन, समय पर और कुशल प्रवर्तन के लिए रणनीतियाँ।

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