छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार दीपावली पर्व पर अन्नकूट पूजा बडे ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :– राजिम नगर सहित आसपास के क्षेत्रों में अन्नकूट बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है इस दिन भक्त अपने घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन भगवान की मूर्ति बनाकर उसे फूलों से सजाते हैं। फिर भगवान तथा गौ माता को कई तरह के 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। उसके बाद फिर लोगों को प्रसाद के रुप मे वितरण किया जाता है।

आमतौर पर भगवान गोवर्धन को लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाया जाता है और उनकी नाभि के स्थान पर मिट्टी का दीपक रखा जाता है। फिर गौ माता और गोवर्धन भगवान की तिलक वंदन कर पैरो को जल से धोया जाता है उसके बाद पुजा अर्चना करके खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। अन्नकूट का पर्व पूर्ण अवतार माने जाने वाले भगवान श्री कृष्ण द्वारा इंद्र देवता की मान मर्यादा के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। लोक परंपरा में इसे गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

अंकुट का पावन पर्व क्यों मनाया जाता है 

हिन्दी पंचांग के मान्यता के अनुसार द्वापर युग में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वाले दिन देवताओं के राजा इंद्र को 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते थे। जब भगवान श्री कृष्ण ने इसका कारण माता यशोदा से पूछा तो उन्होंने बताया कि इंद्रदेव जब वर्षा करते हैं तो हमारे गांव खुशहाल और हमारी खेतो मे फसल बढ़ती है तब कान्हा ने कहा कि यह तो गोवर्धन पर्वत के कारण होता है तब भगवान श्री कृष्ण ने उस प्रथा को बंद कर दिया। गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए सभी को कहा।

जब यह बात इंद्र देवता को पता चला तो उन्होंने वज्रमंडल से घनघोर वर्षा कर दी इससे बचने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठ उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और उसे लेकर 7 दिनों तक खड़े रहे। इसके बाद जब इंद्र का अभिमान दूर हो गया और उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। तब से उन्होंने लोगों को इस दिन गोवर्धन पूजा और अंकुट पर्व मनाये जाने को कहा।

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