हवन पूजन के बाद माता को नम आँखों से दी गई बिदाई, नौ कन्या पूजन और भंडारे का हुआ आयोजन

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :- शक्ति की उपासना का महापर्व नवरात्रि पूरे देश में नौ दिनों तक भक्तिभाव से मनाया गया। इस दौरान देवी के नौ स्वरूपों की पूजा की गई है। नवरात्रि के आठवें दिन माता शक्ति के आठवें स्वरूप माता महागौरी और नवमी पर देवी सिद्धिदात्रि स्वरुप की पूजा अर्चना की जाती है। महाष्टमी पर मंदिरों सहित दुर्गा पंडालों में हवन पूजन किया गया।
दुर्गा पूजा में सबसे महत्वपूर्ण तिथि महाष्टमी को माना जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन माता ने महिषासुर का वध किया था और महिषासुरमर्दिनी कहलाई। इसलिए इस दिन पूजा हवन का विशेष महत्व होता है। नगर के माता शीतला, काली मंदिर, गायत्री मंदिर, माँ परमेश्वरी मंदिर सहित अंचल के माता घटारानी, मां जतमई ,रमई पाठ, मां झरझरा मंदिर और सभी दुर्गा पंडालों में हवन का कार्यक्रम संपन्न हुआ।
मंदिरों में लगा रहा तांता

शरदीय नवरात्रि के आठवें दिन नवरात्रि के महाष्टमी पर्व को लेकर देवी मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहा। माता के भक्तों ने अष्टमी पर माता दुर्गा का विशेष श्रृंगार कर पूजा अर्चना किया गया। अष्टमी को आरती पूजन करने मंदिरो में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा। दिनभर भक्त माता की मूर्ति पर नारियल, सोलह श्रृंगार आदि चढ़ाकर सुख समृद्धि की कामना करते रहे।

कन्या पूजन कर खुशहाली की कामना

हवन पूजन के बाद कन्याओं की मां देवी के रूप में पूजा-अर्चना कर सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना की गई। सभी कन्याओं को अपने हाथों से खीर पूड़ी, हलवा सहित विभिन्न प्रकार का मिष्टान्न परोसा और उपहार भेंट किया। कई दुर्गा पंडालों पर भंडारा का भी आयोजन किया गया था।

नवमी तिथि को जंवारा एवं माता दुर्गा के प्रतिमाओं का विसर्जन जारी रहा । माता के विसर्जन के लिए भक्तों की भारी भीड़ नगर के शीतला तालाब मे उमड़ पड़ी। भक्तों ने नवरात्रि नवमी के मौके पर नम आंखों के साथ मां आदि शक्ति को विदा किया। नवरात्र के आठ दिनों के अनुष्ठान के बाद सोमवार को जब माता के विदाई की बेला आई, तो मां से दूर होने का गम हर भक्तों के अश्रुपूरित आंखें स्पष्ट बता रही थी।
देर रात तक चला विसर्जन
माता विसर्जन का कार्यक्रम देर रात तक चलता रहा। माता के सेवा एवं जसगीत गाते, ढोल-मजीरों के साथ एक तरफ जहां बाना लिए भक्त झूम रहे थे, तो दूसरी ओर कामना पूर्ति के लिए सिर पर जंवारा लिए युवक युवतियों-महिलाओं की टोली कतारबद्ध होकर चल रही थी।
दुर्गा पंडालों से निकलने वाले माता की प्रतिमाओं को ट्रेक्टर, मेटाडोर अन्य वाहन में सवार कर नन्हें बच्चे, मुहल्ले की महिलाएं, देवी मां के भक्त और गालों में बाना लिए व्रती झूमते हुए चल रहे थे। तालाब के जिस घाट में विसर्जित करने की परंपरा रही है, उसी के अनुरूप एक-एक कर प्रतिमाओं तथा जंवारा को विसर्जन किया गया।
भक्तों ने बांटा प्रसाद
शीतला तालाब मार्ग पर कई जगह ठंडा पेय और शुद्ध पानी का इंतजाम माता के भक्तों ने कर रखा था। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस के जवानों की विशेष ड्यूटी तालाब मार्ग पर लगाई गई थी। नगर पालिका द्वारा तालाब किनारे ही अस्थाई कुंड का निर्माण किया गया है।







नवमी और दशमी को दुर्गा और जवांरा विसर्जन के साथ पूरे देश में 12 अक्टूबर को रावण दहन कर दशहरा का पर्व मनाया गया। छत्तीसगढ़ में बस्तर का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है यहाँ 75 दिनों तक दशहरा का पर्व मनाया जाता है।
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