छुरा ब्लॉक में मितानिनों की हड़ताल तेज, 50 फीसदी मानदेय वृद्धि और सिविलियन दर्जा देने की मांग पर 505 मितानिनें सड़क पर उतरीं
राजधानी जा रही महिलाओं को पुलिस ने रोका

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) किशन सिन्हा :– छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ कही जाने वाली मितानिनें अब अपने हक और अधिकार की लड़ाई में खुलकर सड़क पर उतर आई हैं। गरियाबंद जिले के छुरा ब्लॉक में 505 मितानिनें बीते 7 अगस्त से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। उनका साफ कहना है कि जब तक 50 फीसदी मानदेय वृद्धि और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) में सिविलियन दर्जा देने की मांग पूरी नहीं होती, आंदोलन जारी रहेगा।
गुरुवार सुबह छुरा ब्लॉक से सैकड़ों की संख्या में मितानिनें राजधानी रायपुर की ओर बढ़ रही थीं, ताकि अपनी बात शासन तक सीधे पहुंचा सकें। लेकिन रास्ते में ही पुलिस ने उन्हें रोक लिया। इसके बाद गुस्साई मितानिनें चौकी के बाहर सड़क पर ही बैठ गईं और जोरदार नारेबाजी कर विरोध जताया। सड़क पर खड़ी महिलाओं का हुजूम राहगीरों के लिए भी चर्चा का विषय बना रहा।
घोषणा पत्र का वादा पूरा करें सरकार
मितानिनों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव से पहले अपने घोषणा पत्र में यह वादा किया था कि सभी मितानिनों को निश्चित वेतन दिया जाएगा और उन्हें एनजीओ के बजाय सीधे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में शामिल किया जाएगा। साथ ही, प्रशिक्षक, ब्लॉक और पंचायत समन्वयक तथा हेल्प डेस्क फैसिलिटेटर को भी वेतनमान का लाभ देने का भरोसा दिलाया गया था। लेकिन सरकार बनने के बाद उनकी मांगों पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इस हड़ताल का सीधा असर ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ा है।
गांवों में टीकाकरण, प्रसव सहयोग, मातृ-शिशु देखभाल और जनस्वास्थ्य से जुड़े कई जरूरी कार्य ठप हो गए हैं। मितानिनों के जिम्मे जो दायित्व थे, वे अधर में लटक गए हैं। आम जनता अब परेशानियों का सामना कर रही है, क्योंकि स्वास्थ्य सेवाओं की पहली कड़ी ही थम गई है। प्रदर्शनकारी मितानिनें कहती हैं कि वेतनमान की मांग सिर्फ उनके परिवार की जरूरत नहीं बल्कि यह उस सम्मान का सवाल है, जो उन्हें समाज में मिलना चाहिए। उनके अनुसार, जब स्वास्थ्य सेवाओं का दायित्व वे निभाती हैं, तो फिर उनके लिए स्थायी व्यवस्था क्यों नहीं बनाई जा रही।
जारी रहेगा आंदोलन
छुरा-रायपुर मुख्य मार्ग पर सैकड़ों की संख्या में खड़ी मितानिनें लगातार अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं। पुलिस द्वारा रोके जाने के बाद भी उन्होंने पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि जब तक शासन-प्रशासन से कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं मिलेगा, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।
फिलहाल, ग्रामीण इलाकों में बीमार पड़ने वालों और गर्भवती महिलाओं की देखभाल के लिए परिजन खुद ही जतन करने को मजबूर हैं। स्वास्थ्य सेवाओं के इस संकट ने प्रशासन को भी कठिन स्थिति में डाल दिया है। अब देखना यह होगा कि सरकार आंदोलनरत मितानिनों की मांगों पर कितना गंभीर रुख अपनाती है और उनकी समस्याओं के समाधान की दिशा में कब तक ठोस कदम उठाए जाते हैं। मितानिनों का यह आंदोलन पूरे जिले में चर्चा का केंद्र बना हुआ है।
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