कृषि विज्ञान केंद्र गरियाबंद द्वारा विश्व मृदा दिवस के अवसर पर प्रशिक्षण सह जागरूकता कार्यक्रम आयोजन, वैज्ञानिकों ने बताया मिट्टी परीक्षण का महत्व

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) राकेश :– निदेशक, अटारी जबलपुर एवं निदेशक विस्तार, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के निर्देसानुसार कृषि विज्ञान केन्द्र गरियाबंद के संस्था प्रमुख डॉ मनीष चौरसिया के मार्गदर्शन में मृदा वैज्ञानिक मनीष कुमार आर्य एवं वैज्ञानिक प्रवीन कुमार जामरे के द्वारा विश्व मृदा दिवस के अवसर पर 5 दिसम्बर २०२५ को ” स्वस्थ मृदा , स्वस्थ शहर ” थीम पर आधारित एक दिवसीय प्रशिक्षण सह जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन ग्राम मरौदा में ग्राम पटेल बालकुमार प्रगतिशील कृषक नवल किशोर, केशव, ओमप्रकाश, जगदीश, महिला समूह के सदस्य और विद्यार्थियों के गरिमामय उपस्थिति में किया गया।

इस अवसर पर मृदा वैज्ञानिक मनीष कुमार आर्य ने बताया की विश्व मृदा दिवस मनाने का विचार अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ द्वारा 2002 में प्रस्तावित किया गया एवं 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 दिसंबर को आधिकारिक रूप से विश्व मृदा दिवसह घोषित किया। जिसके के बाद प्रति वर्ष 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस का आयोजन मृदा स्वस्थ के महत्व को बढ़ावा देने हेतु किया जाता है।

डॉ आर्य ने बताया की मृदा को बनने में सैकड़ो वर्ष का समय लगता है मृदा परीक्षण (Soil Testing) एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से खेत की मिट्टी का नमूना लेकर उसका प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जाता है। इसमें मिट्टी में उपलब्ध मुख्य (N, P, K), द्वितीयक (S, Ca, Mg) एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों (Zn, Fe, B, Mn, Cu) की मात्रा, pH, EC, जैविक कार्बन, मिट्टी की बनावट आदि का पता लगाया जाता है। साथ ही मृदा परीक्षण एवं मृदा परीक्षण के महत्व के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी दी गयी। 

मृदा परीक्षण क्यों आवश्यकता-

✔ सही मात्रा में खाद एवं उर्वरक की सिफारिश प्राप्त होती है
✔ फसल की उत्पादकता बढ़ती है
✔ उर्वरकों पर होने वाला अतिरिक्त खर्च कम होता है
✔ मिट्टी की उर्वराशक्ति लंबे समय तक बनी रहती है
✔ मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी/अधिशेष की पहचान होती है
✔ मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) के आधार पर वैज्ञानिक कृषि संभव होती है

मृदा परीक्षण का महत्व

  • संतुलित पोषण प्रबंधन-मिट्टी में किस पोषक तत्व की कितनी कमी या अधिकता है – यह जानकर वैज्ञानिक तरीके से खाद डालना संभव होता है।
  • उर्वरक लागत में कमी- बिना जरूरत खाद डालने से लागत बढ़ती है। मृदा परीक्षण आवश्यकता अनुसार सही मात्रा बताता है, जिससे 20–30% तक उर्वरक बचत होती है।
  • उच्च उत्पादन- संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन से फसलें स्वस्थ रहती हैं और पैदावार 10–25% तक बढ़ सकती है।
    मिट्टी की उर्वराशक्ति संरक्षण- अधिक रासायनिक खाद डालने से मिट्टी कड़ी व क्षारीय/अम्लीय हो सकती है। मृदा परीक्षण के आधार पर सुधारक जैसे जिप्सम, चूना आदि की सिफारिश की जा सकती है।
     
  • पर्यावरण की सुरक्षा – अनुचित उर्वरक उपयोग से प्रदूषण बढ़ता है। वैज्ञानिक तरीके से खाद देने से भूजल, नदियाँ और मिट्टी सुरक्षित रहती है।

मिट्टी का नमूना कैसे लें-

  • खेत को भागों में बाँटें, प्रत्येक से 8–10 स्थानों से नमूना लें
  • 0–15 सेमी गहराई से मिट्टी लें
  • सभी नमूनों को मिलाकर 0.5 किग्रा मिश्रित नमूना तैयार करें। 
  • साफ व सूखे पॉलिथिन बैग में भरें और लेबल लगाएँ पास के कृषि विज्ञान केंद्र या मान्यता प्राप्त मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में जमा करे। 

मृदा परीक्षण से लाभ

  • मृदा जांच से मृदा की उर्वरता स्तर का पता चलता है कि हमारी मृदा में कौन से तत्व की कमी है और कौन से तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है ।
  •  मिट्टी ऊसर या अनुपजाऊ तो नहीं हो रही है इसका भी पता चल जाता है।इससे कृषक अपनी फसल में उर्वरकों का अच्छी तरह से प्रबंधन करके अतिरिक्त लागत को कम कर सकते हैं।
  • फसल को मृदा जनित रोग या अन्य रोग व्याधियों से बचाया जा सकता है। मृदा परीक्षण करने से उस खेत में 3 साल तक मृदा परीक्षण नहीं करना पड़ता। 3 साल बाद फिर से मृदा परीक्षण करा सकते हैं ।

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