पोटाश बम से घायल बेबी हाथी अघन की हुई मौत, 28 हाथियों के दल ने भी छोड़ दिया था साथ
(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :- गरियाबंद जिले में पोटाश बम से घायल बेबी हाथी अघन की मौत हो गई । अघन ने शनिवार दोपहर 3 : 35 बजे अपनी अंतिम साँसे ली। बता दे पिछले एक महीने से उदंती उपनिदेशक वरुण जैन अपनी पूरी टीम और जंगल सफारी से आए डाक्टरों की पूरी टीम अघन को बचाने में लगे हुए थे लेकिन अघन ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
गरियाबंद में पोटाश बम से घायल हाथी की सेहत में सुधार होना शुरू हो गया था । उदंती सीता नदी अभयारण्य नन्हें शावक की देखभाल उपनिदेशक वरुण जैन के नेतृत्व में 30 से ज्यादा लोग लगे हुए थे। इनमें दो महावत और वाइल्ड लाइफ चिकित्सक डॉक्टर राकेश वर्मा 24 घंटे शावक की निगरानी और उसके मूवमेंट पर नजर बनाए हुए थे।
बता दे कि बीते 7 नवंबर को एक मुखबिर ने रिसगांव क्षेत्राधिकारी को उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व के सीतानदी क्षेत्र के सातलोर बीट में खून बिखरा होने की जानकारी दी थी। इसके बाद क्षेत्राधिकारी अपने स्टाफ के साथ मौके पर पहुंचे और जांच शुरू की। इस दौरान टीम को पोटाश बम का टुकड़ा मिला था।
डॉग स्क्वाड और ड्रोन की मदद से खोजा
उसके बाद से एंटी पोचिंग टीम द्वारा मौके का मुआयना किया गया और विभाग की टीम के साथ मिलकर 6 किलोमीटर तक खून के धब्बे के साथ पगमार्क ट्रेस किए। मौके की जांच के बाद टीम ने आशंका जताई कि बम विस्फोट से हाथियों का दल छोटे-छोटे चार दलों में बंट गया होगा और इसी दौरान दोनों हाथी झुंड से अलग हो गए होंगे। इसके बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए सीसीएफ वाइल्डलाइफ सतोविषा समाजदार, जंगल सफारी के डॉक्टर राकेश वर्मा ने डॉग स्क्वाड और ड्रोन की मदद से तीन दिनों तक लगातार घायल हाथी की तलाश की उसके बाद उदंती उपनिदेशक वरुण जैन बेबी एलीफेंट को बचाने की जुगत में लगे रहे।
पिछले एक महीने से वन विभाग की टीम अलर्ट
हाथी के शावक को लेकर वन विभाग की टीम अलर्ट है। पोटाश बम लगाने वाले की तलाश की जा रही है लेकिन अभी तक वन विभाग आरोपी को पकड़ पाने में नाकाम रहा है। पोटाश बम धमाके की घटना 7 नवंबर 2024 की हुई थी इस मामले का खुलासा 10 नवंबर को हुआ था तब से लगातार हाथी के शावक की तलाश की जा रही थी। वन विभाग की टीम ने आरोपी शिकारी को पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा की है।
28 हाथियों के दल ने छोड़ा साथ
घटना स्थल के पास 28 हाथियों का दल भी मौजूद था लेकिन वह घायल हाथी और उसके बच्चे को छोड़कर 100 किलोमीटर दूर चला गया। इससे बच्चे की स्थिति और जटिल हो गई। वन विभाग बच्चे को जल्द से जल्द स्थिर करने की कोशिश में लगातार लगे हुए थे, ताकि उसका इलाज किया जा सके और उसे पूरी तरह से ठीक किया जा सके।
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