पिता की अंतिम इच्छा की पूरी: बेटियों ने दी पिता को मुखाग्नि, शमशान घाट में फर्ज निभाता देख लोगों की आंखे हुई नम

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :– नवापारा नगर की बेटियों ने समाज के लिए मिसाल कायम की है। पिता के निधन पर बेटे का फर्ज निभाते हुए अर्थी को कंधा तो दिया ही साथ ही साथ ही चिता को मुखाग्नि भी दी। बेटे ही नहीं बेटियां भी आज के समय में बेटों की तरह माता – पिता के प्रति पूरा फर्ज निभाती हैं। बेटियाँ भी बेटों की ओर से की जाने वाली धार्मिक रस्मों को निभा रही हैं।

पहले पिता की चिता में मुखाग्नि सिर्फ बेटा ही दे सकता था। बेटियां चिता को आग नहीं लगा सकतीं। इस रूढिवादी सामाजिक सोच से ऊपर उठकर बेटी अदिति, मुस्कान और श्रुति ने रविवार को अपने पिता का अंतिम संस्कार किया। जब बेटियों ने अंतिम संस्कार किया तो वहां मौजूद हर एक शख्स की आँखें नम हो गई।

नवापारा नगर के स्थानीय दिगम्बर जैन समाज के सुश्रावक संजय राजू जैन का लंबी बीमारी के उपरांत 18 मई, रविवार को दोपहर 12.30 बजे देह परिवर्तन हुआ। उनका अंतिम संस्कार दोपहर 3.30 स्थानीय मुक्तिधाम में किया गया। संजय राजू जैन की तीन बेटियां अदिति, मुस्कान और श्रुति हैं। पिता की अंतिम इच्छा थी कि मेरी बेटियां ही मेरा अंतिम संस्कार करे। तीनों बेटियों ने अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी करते हुए विधि विधान पूर्वक पिता का अंतिम संस्कार किया।

बेटियों ने विधि-विधान के साथ निभाई रस्म

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जब अंतिम यात्रा निकाली तो तीनों बेटियां, दोनों बहनें रजनी और रंजना तथा दामाद हिमांशु आगे आए और अपने पिता की अर्थी को कंधा दिया। यही नहीं बेटियां घर से लेकर मुक्तिधाम तक पिता की शव यात्रा के साथ गई। श्मशान घाट में बेटियों ने पूरे रीति रिवाज के साथ पिता को मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार किया। वहीं बेटियों ने अपने दिल को कड़ा कर सभी रस्में निभाई। बेटियों ने कहा कि उनके पिता उन्हें बेटा ही मानते थे। आज उन्होंने अपने अधिकार को पूरा किया।

धर्मनिष्ठ होकर जीवन जिया

संजय राजू जैन का जीवन बहुत ही धर्म पूर्वक बीता। धर्म के प्रति उनकी विशेष रुचि थी। उन्होंने पट्टाचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी महाराज को अपना गुरु मानकर त्यागियों सा जीवन जिया। उन्होंने कुछ वर्षों तक समाज के बच्चों में संस्कार का बीजारोपण करने धार्मिक पाठशाला का भी कुशल संचालन किया। स्वयं स्वाध्याय करते थे और नियमित रूप से समाज के लोगों को स्वाध्याय करवाते थे। उनका सभी साधु संतों के प्रति अटूट सेवा भाव था। उनके आहार, विहार और निहार की सभी क्रियाओं में वे प्रथम पंक्ति में रहते थे। उनके निधन पर सामाजिक जनों के साथ साथ नवापारा नगर के नागरिकों ने भी शोक व्यक्त किया।

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