“बहादुर दादा को प्रशासन का सलाम, मौत के मुंह से लौटे पोते संग वीरता को मिला सम्मान”
"जब तेंदुआ बना काल, तब दादा बने ढाल" कोठीगांव में एक नायाब बहादुरी की दास्तान, जहाँ रिश्तों का साहस बना जीवन की ढाल

(छत्तीसगढ़ प्रयाग) किशन सिन्हा
गरियाबंद ज़िले के छुरा विकासखंड के कोठीगांव में रिश्तों की ताक़त और अदम्य साहस की ऐसी कहानी सामने आई है, जो न केवल रोमांचित करती है बल्कि मानवीय जज़्बे की मिसाल भी पेश करती है।
चार साल का मासूम प्रदीप शाम के समय आँगन में खेल रहा था, उसे क्या पता था कि घात लगाए बैठा तेंदुआ मौत बनकर उसके करीब आ रहा है। जंगल की ओर से आए उस हिंस्र शिकारी ने पल भर में बच्चे पर झपट्टा मारा और उसे उठाकर भागने लगा। लेकिन जैसे ही यह दृश्य बच्चे के दादा, श्री दर्शन नेताम की आँखों के सामने आया, उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना छलांग लगाई—सीधे उस तेंदुए के पीछे।
कुछ दूर जाने के बाद जैसे ही मौका मिला, बुजुर्ग दर्शन नेताम ने तेंदुए की पीठ पर झपट्टा मारा और अपने पोते को उसके जबड़े से छुड़ाया। संघर्ष के क्षणों में तेंदुआ घबरा गया और जंगल की ओर भाग निकला। इस बहादुरी भरे संघर्ष में बालक को पंजों से हल्की खरोंच आई, लेकिन उसकी जान बच गई।
इस साहसिक कार्य ने पूरे प्रशासन को भी भावविभोर कर दिया। ज़िला कलेक्टर भगवान सिंह उइके ने कलेक्ट्रेट कार्यालय में आयोजित एक सादे सम्मान समारोह में श्री नेताम को स्मृति चिन्ह प्रदान कर उनका अभिनंदन किया। इस अवसर पर डीएफओ लक्ष्मण सिंह भी उपस्थित थे।
सम्मान समारोह में प्रशासन ने न सिर्फ वीर बुजुर्ग की हिम्मत को सराहा, बल्कि ग्रामीणों को चेताया कि वन क्षेत्र से लगे गांवों में सतर्कता बरतना अत्यावश्यक है। कलेक्टर ने विशेष रूप से अपील की कि ग्रामीण अंधेरे में या बिना सुरक्षा उपायों के जंगलों की ओर न जाएं, और किसी भी जंगली जानवर की उपस्थिति की सूचना तत्काल वन विभाग को दें।
यह घटना महज़ एक परिवार की नहीं, बल्कि उस अदृश्य धागे की कहानी है, जो प्रेम, साहस और बलिदान से बुना होता है। श्री दर्शन नेताम की यह वीरता आने वाली पीढ़ियों को न केवल प्रेरणा देगी, बल्कि यह भी बताएगी कि “जब समय की आँधी रिश्तों को परखती है, तो कुछ लोग चट्टान बनकर खड़े हो जाते हैं।”