जुलनमारी बांध में उलट का निर्माण, इमारती पेड़ चढ़ रहे निर्माण कार्यों की भेंट, गुणवक्ता का भी दिख रहा अभाव

निर्माण कार्य के दौरान पर्यावरण और वन सुरक्षा नियमों की अनदेखी

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) किशन सिन्हा :– छुरा ब्लाक के कोडामार और पलेमा गांव के बीच जल संसाधन विभाग द्वारा जुलनमारी बांध के उलट का निर्माण किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में सिंचाई सुविधा को बढ़ाना और जल संचयन को मजबूत बनाना है। लेकिन इसे बनाने में कीमती इमारती पेड़ों की बलि चढा दी गई है साथ ही निर्माण की गुणवत्ता पर भी गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।

मामला छुरा वन परिक्षेत्र अंतर्गत कनसींघी बिट के कक्ष क्रमांक 293 में जुलनमारी बांध पर उलट का निर्माण किया जा रहा है। इस निर्माण को जल प्रबंधन की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है। एक तरफ तो निर्माण कार्य पूर्ण नहीं हुआ है वहीं दूसरी तरफ बरसात से पहले आई बारिश से उलट निर्माण में उपयोग किए गए कंक्रीट में गुणवत्ता का अभाव साफ तौर पर देखा जा सकता है।

वहीं निर्माण कार्य के दौरान पर्यावरण और वन सुरक्षा नियमों की अनदेखी हो रही है। निर्माण क्षेत्र के पास की घनी वनभूमि से सरई, साजा और सेनहा जैसे इमारती पेड़ों की बेरहमी से कटाई की जा रही है और इनका उपयोग निर्माण कार्य में किया जा रहा है। स्थानीय ग्रामीणों और पर्यावरण प्रेमियों ने चिंता जताई है कि छोटे पेड़ों की कटाई से वन संपदा को नुकशान हो रहा है। ठेकेदार द्वारा मनमानी कर अपने पैसे बचाने के लिए इन पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई है जो झाड़ बड़े होकर बेशकीमती बनते।                           

वन विभाग के कर्मचारियों ने इस संबंध में जानकारी दी है कि उन्होंने स्थिति का संज्ञान ले लिया है और जल्दी ही उचित कार्रवाई की जाएगी। हालांकि अभी तक निर्माण कार्य पर कोई रोक नहीं लगी है, जिससे विभाग की सक्रियता पर सवाल उठ रहे हैं।

गुणवत्ता को लेकर भी सवाल

वहीं इस निर्माण की गुणवत्ता को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। स्थानीय सूत्रों की मानें तो निर्माण कार्य में मानकों की अनदेखी हो रही है जहां कई स्थानों पर घटिया सामग्री का उपयोग किया गया है। इससे भविष्य में बांध के उलट में मजबूती पर खतरा मंडरा रहा है। यहां समस्या यह नहीं है कि निर्माण हो रहा है, बल्कि यह है कि वह किस कीमत पर हो रहा है। जल संसाधन विभाग को चाहिए कि निर्माण कार्य की गुणवत्ता की निगरानी के साथ-साथ वन विभाग की अनुमति के बिना कोई भी पेड़ ना काटा जाए।

एक ओर जहां जुलनमारी बांध जैसे प्रोजेक्ट से क्षेत्र के किसानों को भविष्य में राहत की उम्मीद है, वहीं दूसरी ओर प्रकृति को जो नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई कर पाना आसान नहीं होगा। अब ज़रूरत है कि दोनों पक्षों – विकास और पर्यावरण में संतुलन बैठाकर काम किया जाए, ताकि कोई भी पक्ष अनदेखा ना हो और प्रकृति के साथ विकास की सच्ची मिसाल पेश की जा सके।

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