युक्तियुक्तकरण नीति में लापरवाही पर शिकंजा: काउंसिलिंग में अव्यवस्था फैलाने वाले अधिकारी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश

(छत्तीसगढ़ प्रयाग) किशन सिन्हा : – गरियाबंद, जिले में वर्षों से शिक्षा व्यवस्था में चली आ रही शिक्षकों की कमी की समस्या अब काफी हद तक सुलझ चुकी है। शासन के निर्देश पर चलाए गए युक्तियुक्तकरण (रैशनलाइजेशन) अभियान के तहत विभिन्न संवर्गों के अतिशेष शिक्षकों को रिक्त पदों पर पदस्थ किया गया, जिससे अब जिले में एक भी विद्यालय पूरी तरह शिक्षकविहीन नहीं रहा है। मैनपुर, देवभोग और छुरा जैसे आदिवासी और दूरस्थ अंचलों के सैकड़ों बच्चों को अब नियमित शिक्षक उपलब्ध हो पाए हैं। एकल शिक्षकीय शालाओं की संख्या भी पहले के 167 से घटकर अब सिर्फ 46 रह गई है। लेकिन इस सफलता के बीच छुरा विकासखंड शिक्षा अधिकारी की लापरवाही ने पूरी प्रक्रिया को अस्थायी रूप से झकझोर कर रख दिया था।
छुरा विकासखंड शिक्षा अधिकारी के.एल. मतावले पर शासन के दिशा-निर्देशों की खुली अवहेलना, समयसीमा का उल्लंघन, गलत जानकारी प्रस्तुत करने और जानबूझकर वरिष्ठता संबंधी तथ्य छिपाने जैसे गंभीर आरोप सामने आए हैं। कलेक्टर कार्यालय की ओर से जारी रिपोर्ट में बताया गया कि मतावले द्वारा प्रस्तुत विवरणों में अनेक त्रुटियां थीं, जिनके चलते काउंसिलिंग प्रक्रिया भ्रमित हो गई। यह लापरवाही केवल कागज़ों तक सीमित नहीं रही, बल्कि ज़मीनी स्तर पर योग्य शिक्षकों को गलत तरीके से कनिष्ठ दिखाकर उनके स्थानांतरण के अधिकार को प्रभावित किया गया।
प्राथमिक शाला टिकरापारा रानीपरतेवा एवं सतनामीपारा रानीपरतेवा की काउंसिलिंग में वरिष्ठ शिक्षिका कुंज दीवान को जानबूझकर कनिष्ठ दर्शाया गया, जिससे उन्हें अनुचित रूप से बुलाया गया। माध्यमिक शाला सांकरा में पाँच शिक्षक कार्यरत होने के बावजूद किसी को भी अतिशेष नहीं माना गया, जो प्रक्रिया में गंभीर असंगति को दर्शाता है। इसी प्रकार, हाई स्कूल पेण्ड्रा में संचालित वाणिज्य संकाय को ‘गैर-संचालित’ बताकर वहाँ की व्याख्याता मधु वर्मा को अतिशेष घोषित कर दिया गया, जबकि वास्तविकता इसके विपरीत थी।

इसके अलावा, हाई स्कूल सेम्हरा, घटकर्रा और हायर सेकेंडरी विद्यालय पंक्तिया सहित अन्य संस्थानों में अतिथि शिक्षकों की गिनती में भी गड़बड़ियाँ की गईं। कई स्थानों पर शालाओं की भौगोलिक स्थिति और नाम तक गलत दर्शाए गए। इन भ्रामक रिपोर्टों ने जिला स्तरीय समिति को गुमराह किया और समूची प्रक्रिया की पारदर्शिता को प्रभावित किया। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि मतावले की लापरवाही से जिले की छवि और शासन की मंशा को आघात पहुँचा।

इन त्रुटियों को छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 3 के उल्लंघन की श्रेणी में रखते हुए कलेक्टर कार्यालय ने मतावले के विरुद्ध कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई, निलंबन और विभागीय जांच की अनुशंसा करते हुए प्रस्ताव शासन के स्कूल शिक्षा विभाग, रायपुर को भेजा है। प्रशासन का संदेश साफ है कि शिक्षा जैसी संवेदनशील व्यवस्था में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सर्वोपरि है। इसी वजह से, युक्तियुक्तकरण की इस ऐतिहासिक प्रक्रिया में शासन जहां एक ओर सराहना का पात्र है, वहीं ऐसे गैर-जिम्मेदाराना आचरण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।