औपचारिकता बनकर रह गया होली का त्योहार, नहीं बन पाया होलियाना माहौल

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :- होली के प्रति लोगों में पहले जैसा उत्साह अब देखने को नहीं मिलता। दीपावली के बाद, होली, हिन्दुओं का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। लेकिन अब तक नवापारा, राजिम शहर सहित गांव देहातों में भी होलियाना माहौल नहीं बन पाया है। नंगाड़ों की थाप तो मानो बीते जमाने की बात हो गई है। कहीं पर भी नंगाड़े की थाप सुनाई नहीं दे रही है।

पहले बसंत पंचमी के दिन से ही पूजा अर्चना के साथ नंगाड़ों की थाप गली मोहल्लों में सुनाई देने लगती थी और इस दिन लोग होलिका दहन स्थल पर पूजा कर अंडा पौधा लगाकर होली के लिए लकड़ी, कंडा इकट्ठा करते और शाम के समय फाग गीत गाकर होली की सूचना देते थे, किन्तु अब रंगों का पर्व होली त्यौहार भी महज औपचारिकता बनकर रह गई है। लोग अब केवल होली के दिन ही एक दूसरे पर गुलाल लगाकर औपचारिकता निभाते है।

अब नहीं दिखता पलाश के फूल से बनने वाला रंग

रंगों के इस त्योहार में सिंदूरी लाल पलाश (टेसू) के फूल का जिक्र न हो, ऐसा संभव नहीं है। जानकार बताते हैं कि पलाश के वृक्षों में फूल तभी खिलता है, जब फाल्गुन का महीना लग जाता है। लंबे समय से इसके फूलों का प्रयोग रंग बनाने के लिए किया जाता है। इन रंगों का प्रयोग होली खेलने के लिए किया जाता है।

वर्तमान में कृत्रिम रासायनिक रंगों की सुलभता ने भले ही लोगों को प्रकृति से दूर कर दिया हो, लेकिन रासायनिक रंगों से होने वाले नुकसान और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के कारण लोग दोबारा प्रकृति की ओर रुख करते हुए पलाश के फूलों का इस्तेमाल रंगों के लिए करने लगे हैं। राजिम क्षेत्र के कई जगहों पर सड़क किनारे दर्जनों पेड़ में ये फूल खिले हुए नजर आ रहे हैं, जो काफी आकर्षक लग रहे हैं। पुराने जमाने की बात कहें, तो इसी फूल से पहले रंग तैयार किया जाता था। जिसे शुभ भी माना जाता था। जमाना बदलता गया। आज के परिवेश में होली के लिए दुनिया भर का रंग बाजार में उपलब्ध हो गया है।

युवा को नहीं पसंद नंगाड़ों की थाप सुनना

बच्चे भी अब ऐसे माहौल के बजाए मोबाईल और कम्प्यूटर आदि को अधिक पसंद करते है। लोगों ने धीरे धीरे नंगाड़ों की जगह आधुनिक वाद्य यंत्रों का प्रयोग करना शुरू कर दिया है। आज का युवा वर्ग होली के पर्व में नंगाड़ों की थाप सुनना पसंद नहीं करते। डीजे की कानफोड़ू आवाज पर थिरकना पसंद है। पर नंगाड़ों की धुन पर फाग गीत सुनने में रूचि नहीं है।

सदियों से होली के त्यौहार को प्रेम, उमंग, उत्साह व भाईचारे के रूप में मनाया जाता है। लेकिन बदलते परिवेश में आधुनिकता ने अपना असर इस कदर छोड़ा है, जिसके कारण यह त्यौहार केवल गुलाल लगाने की औपचारिकता तक सिमट कर रह गया है। रंगों का पर्व होली के समय ही बच्चों के इम्तिहान की घड़ी रहती है और इस कारण बच्चे चाहकर भी होली के रंग में रंग नहीं पाते। वहीं कानून के दायरे में आने के बाद नंगाड़ों की थाप भी बंद हो गई है।

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