पत्रकारों के हक़ और सुरक्षा की लड़ाई के लिए गठित हुआ प्रेस क्लब नवा रायपुर (अभनपुर), रोहित सोनी चुने गए अध्यक्ष

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :– ग्राउंड रिपोर्टिंग करने वाले संघर्षशील पत्रकारों की सुरक्षा, सम्मान और उनके हक की लड़ाई के लिए प्रेस क्लब नवा रायपुर (अभनपुर) का ऐतिहासिक गठन किया गया। आए दिन पत्रकारों पर हो रहे हमले और आर्थिक तंगी के कारण जूझते जुझारू पत्रकारों की समस्याओं को देखते हुए यह संगठन बनाया गया है।
इस मौके पर पत्रकारों ने कहा कि प्रेस क्लब नवा रायपुर (अभनपुर) न सिर्फ पत्रकारों के हक और सुरक्षा की लड़ाई लड़ेगा, बल्कि जमीनी मुद्दों को मजबूती से उठाने वाले पत्रकारों की आवाज़ बनेगा। क्लब ने आने वाले समय में पत्रकारों के हित में कई रचनात्मक कदम उठाने का भी संकल्प लिया।
प्रेस क्लब के गठन के दौरान सर्वसम्मति से अध्यक्ष – रोहित सोनी (प्रबंध संपादक, पब्लिक स्वर), उपाध्यक्ष- मनीष जैन (नवप्रदेश, नवापारा), उपाध्यक्ष – कमल नारायण सोनी (नई दुनिया, अभनपुर), सचिव – कुलदीप अग्रवाल (एशियन न्यूज, अभनपुर), सह सचिव – नीरज शर्मा (IBC 24, राजिम), सलाहकार – नारायण सोनी (पत्रकार, अभनपुर), मीडिया प्रभारी – श्रीकांत साहू (संपादक, छग प्रयाग न्यूज), कोषाध्यक्ष – प्रीतम टंडन, कार्यकारिणी सदस्य – बबला यादव, मनीष साहू का चयन किया गया।
पत्रकारों की समस्यायें

देश-प्रदेश में जमीनी पत्रकारों की भूमिका लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में बेहद अहम है, लेकिन विडंबना यह है कि ग्रामीण और कस्बाई स्तर पर कार्यरत पत्रकारों को आज भी कई बुनियादी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।
सुरक्षा की कमी
ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान भ्रष्टाचार, माफिया, अवैध कारोबार और सत्ता पक्ष के खिलाफ खबरें प्रकाशित करने वाले पत्रकारों पर हमले आम हो गए हैं। कई मामलों में FIR तक दर्ज नहीं होती। कई स्वतंत्र पत्रकारों और स्ट्रिंगरों को मीडिया संस्थानों से कानूनी, आर्थिक और नैतिक सहयोग नहीं मिलता। खबर की जिम्मेदारी पूरी तरह पत्रकार पर डाल दी जाती है।
आर्थिक असुरक्षा
बड़े-बड़े संस्थानों में काम करने वाले पत्रकारों को छोड़ दें, तो अधिकतर छोटे-बड़े पत्रकार बिना वेतन या बेहद कम पारिश्रमिक पर काम कर रहे हैं। बहुतों को मानदेय या स्थायी नियुक्ति तक नहीं मिली है।
प्रेस की आज़ादी पर खतरा
प्रशासनिक दबाव, राजनीतिक हस्तक्षेप और विज्ञापन की नीति के चलते सच्ची और निष्पक्ष पत्रकारिता को कुचला जा रहा है। ग्रामीण पत्रकारों को ना तो तकनीकी संसाधन मिलते हैं, ना ही किसी तरह का नियमित प्रशिक्षण। इसके चलते वो न तो अपने हक को जानते हैं और न कानूनी सुरक्षा को।
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