रामचरित मानस हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं – प्रफुल्ल दुबे

स.शि.मं नवापारा में संत तुलसीदास एवं मुंशी प्रेमचंद जयंती हर्षोल्लास से मनाया गया

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :– सरस्वती शिशु मंदिर नवापारा में गोस्वामी तुलसीदास जयंती पर रामचरितमानस का व्याख्यान किया गया। विद्यालय के व्यवस्थापक प्रफुल्ल दुबे, प्राचार्य गौरी शंकर निर्मलकर, वरिष्ठ शिक्षक नरेश यादव, दीपक देवांगन, नरेंद्र साहू, नारायण पटेल, तामेश्वर साहू, कृष्णकुमार वर्मा ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यकम का शुभारंभ किया।

सर्वप्रथम गोस्वामी तुलसीदास जी एवं मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर शिक्षक नंदकुमार साहू एवं संगीत प्रमुख रेणु निर्मलकर ने संगीतमय भजन के साथ रामायण का व्याखान करते हुए बताया कि गोस्वामी तुलसी दास का जन्म प्रयाग के पास चित्रकूट जिले में राजापुर नामक एक ग्राम में आत्माराम दुबे एवं उनकी धर्म पत्नी हुलसी देवी के यहाँ संवत 1554 की श्रवण शुक्ला सप्तमी के दिन मूल नक्षत्र में हुआ था। जन्म लेते ही उनके मुख से राम का शब्द निकला ।

आगे जब बड़े हुए तो उनका विवाह सुंदर कन्या के साथ हुआ। एक बार उनकी पत्नी भाई के साथ अपने मायके चली गयी । पीछे पीछे तुलसी दासजी जी वहाँ जा पहुँचे । उनकी पत्नी ने इस पर बहुत धिक्कारा और कहा कि मेरे इस हाड मांस के शरीर में जितनी तुम्हारी आशक्ति हैं, उससे आधी भी यदि भगवान राम में प्रेम करोंगे तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा । इस बात को सुनकर तुलसी दास के मन में संसार के प्रति जो राग थे वह समाप्त हो गया और विषय वासना को त्याग करने, साधना-आराधना में लीन रहने एवं रामभक्ति के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया।

जीवन जीने की कला सिखाती है

प्रफुल्ल कुमार दुबे ने कहा कि राम चरित्र मानस हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। हमें भाई-भाई के प्रति प्रेम कैसे होना चाहिए, माता पिता के प्रति प्रेम कैसे होना चाहिए ? यह राम चरित मानस हमे सिखाता हैं।

सरोज कंसारी ने कार्यकम का संचालन करते हुए कहा कि प्रेमचंद जी में हर वर्ग के लोगों के दर्द को बेहद करीब से महसूस किया , उसे दूर करने का प्रयास किया। उनकी भावनाओं में विविध रंग थे, कोरी कल्पनाएं नहीं। जीवन की वास्तविकता से हमे परिचित कराया। सादा जीवन उच्च विचार थे। हर तकलीफ को अपनी ताकत बनाकर अपना जीवन औरो के लिए समर्पित किया। उनकी स्वरचित कविता पढ़ी जो बेहद मर्म स्पर्शी रही “पढ़िए कभी रंगभूमि-कर्मभूमि, गबन-गोदान, मन की सिसकी बेबसी और दिखेगी रूंदन”।

अंत में आभार प्रदर्शन प्राचार्य गौरी शंकर निर्मलकर ने किया। आरती एवं प्रसादी वितरण के पश्चात कार्यक्रम का समापन किया गया। इस अवसर पर समस्त शिक्षकगण उपस्थित रहें।

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