विश्व पर्यावरण दिवस: राजिम त्रिवेणी संगम की हालत दिनों दिन हो रही खराब, जलकुंभी से संगम में बिछी हरी चादर, गाद और मुरूम ने रोक रखा है बहाव

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :– विश्व पर्यावरण दिवस हर वर्ष 5 जून को मनाया जाता है। यह दिवस लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक बनाना है।

इसी तरह भारत में प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। संयोग से आज पर्यावरण दिवस पर गंगा दशहरा भी है। हिंदू धर्म में गंगा दशहरा के दिन नदी में स्नान और दान-पुण्य के कार्यों का बड़ा महत्व है। इसी बहाने नदियों के संरक्षण का संकल्प लिया जाता है। 

लेकिन, नवापारा और राजिम के आसपास क्षेत्रों में महानदी की दुर्दशा देख हर पर्यावरण प्रेमीयों का मन व्यथित हो जाता है। नदी की दुर्दशा आने वाली पीढ़ी और भविष्य के लिए गहरा संकट है। नदी में जमी हुई गाद विकराल रूप लेकर नदी के अस्तित्व को धीरे धीरे समाप्त कर रही है। हाल के ही दशकों में फले-फूले अवैध रेत खनन से नदी का यह स्वरूप और भी बिगड़ता जा रहा है।

गाद, सिल्ट, मिट्टी, मुरुम और रेत खनन से महानदी की धार में अवरोध पैदा हो रहा है। ऊपरी हिस्से में इंटेकवेल के आसपास भी पूरी तरह से गाद ही दिखाई देता है नदी की धार नहीं। निचले हिस्से पारागांव की ओर पूरे हिस्से में जलकुंभी उग आई है। नदी में गाद जमा होने के कारण नदी से लगे इलाकों में भी भूजल स्तर नीचे चला गया है और वहां पीने के पानी की समस्या होने लगी है।

वाटर रिचार्जिंग में मिलेगी मदद  

पर्यावरण के जानकार बताते हैं कि गाद निकलने से वाटर रिचार्जिंग में तेजी आएगी और भूजल स्तर बढ़ेगा जिससे पेयजल की समस्या भी दूर होगी। उनका मानना है कि नदी में मुरुम डालकर रोड बनना भी घातक है क्योंकि मुरुम पानी के बहाव को रोक देती है जबकि रेत पानी के बहाव को बनाए रखती है। इस नदी के पुनरुद्धार हेतु पिछले कई दशकों से कोई काम नहीं हुआ है। अभी वाटर रिचार्ज नहीं हो पा रहा है। अभी से वाटर लेवर नीचे चला गया है। नदी के किनारे ही अंडर ग्राउंड वाटर लेवल 60 फीट से 80 फीट नीचे चला गया है।

अलग से प्राधिकरण बनाने की जरूरत: गौतम बंधोपाध्याय

इस मामले में नदी घाटी आंदोलन के गौतम बंधोपाध्याय का कहना है कि संगम क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए। केंद्र एवं राज्य सरकार के संयुक्त प्रयास से ढांचागत योजना बनाकर नदी का जीवन बचाना होगा। नदी किनारे बसे गांवों व सभी समाज के लोगों से पंचायतों से चर्चा कर उनकी भूमिका भी तय की जानी चाहिए। एक प्राधिकरण बनाकर महानदी की स्वच्छता, जल की उपलब्धता और नदी किनारे विकास की मॉनिटरिंग करने की आवश्यकता है।

पूरे नगर का सीवेज नदी में मिल पानी को कर रहा दूषित

पूरे नगर का दूषित जल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंचाने एक बड़े नाले का निर्माण जल संसाधन विभाग द्वारा नदी के गर्भ में ही कर दिया गया है। जिसे जगह जगह से खुला छोड़ दिया गया है। इसी खुले स्थान से दूषित जल सीधे नदी में मिलकर पूरी तरह से नदी के पानी को दूषित कर रहा है।

राइस मिलों का दूषित जल नदी में मिल रहा

राइस मिलों से निकलने वाला दूषित जल सीधे नदी में मिल रहा है जिससे नदी का पानी निस्तारी के योग्य भी नहीं रह गया है। यदि इसका उचित प्रबंधन मिलों द्वारा नहीं किया जाता है तो यह प्रदूषण पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा है।

एक तारीख बनकर रह गया है

जल है तो पर्यावरण है, पर्यावरण है तो हम हैं और अगर जल ही सुरक्षित नहीं होगा तो हम भी चैन से नहीं रह पाएंगे। जल दिवस, पर्यावरण दिवस पर अखबारों में कई लेख छपते हैं, सोशल मीडिया पर फोटो और पोस्ट लगाए जाते हैं। पेड़ लगाने की बात होती है, नदियों की सफाई का संकल्प लिया जाता है। लेकिन क्या हम सच में पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं या ये दिन अब सिर्फ कैलेंडर की एक तारीख बनकर रह गया है? आज जब हम चारों ओर देखते हैं, तो साफ दिखाई देता है कि पर्यावरण संकट में है। इसके लिए सभी को मिलकर सामने आना पड़ेगा ताकि हमारा भविष्य सुरक्षित हो सके।

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