एक दिन तेंदुआ, दूसरे दिन घायल चीतल, पंडरीपानी में वन्यजीवों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) किशन सिन्हा :– वन परिक्षेत्र पांडुका के तिलईदादर परिसर अंतर्गत ग्राम पंडरीपानीडीह में बीते दो दिनों से वन्यजीवों की उपस्थिति और घटनाएं लगातार चर्चा का विषय बनी हुई हैं। बीते दिन जहां एक तेंदुआ गांव में घुस आया और कुएं में गिरने के बाद हड़कंप मच गया, वहीं आज एक और गंभीर मामला सामने आया – गांव में एक नन्ही मादा चीतल (लगभग 8 माह) को आवारा कुत्तों ने बुरी तरह घायल कर दिया।

 

चीतल की जान तो बच गई, लेकिन यह घटना वन्यजीवों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है। ग्रामवासी भूषण साहू ने घायल चीतल को समय रहते बचाया और अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए उसे संरक्षण में लिया। पशु चिकित्सकों की मदद से उसका उपचार करवाया गया, जिसके बाद वन विभाग ने उसे उसके रहवास क्षेत्र – कक्ष क्रमांक R.F. 146, परिसर तिलईदादर में पुनः छोड़ दिया।

 

पर सवाल ये है – क्या ये पर्याप्त था?

वन्यजीव विशेषज्ञों और स्थानीय ग्रामीणों का मानना है कि घायल अवस्था में चीतल को तत्काल जंगल में वापस भेजना उचित नहीं था। इससे उसके स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है, साथ ही यह भविष्य में किसी शिकारी जानवर का शिकार भी बन सकती है। सवाल यह भी उठता है कि क्या वन विभाग को घायल वन्यप्राणी का पूर्ण इलाज और निगरानी करने के बाद ही उसे वापस प्राकृतिक आवास में छोड़ना चाहिए था?

एक दिन पहले – रोमांचक तेंदुआ रेस्क्यू!

गौरतलब है कि ठीक एक दिन पहले, इसी गांव में एक तेंदुआ मुर्गी का शिकार करने के प्रयास में एक गहरे कुएं में गिर गया था। तेंदुए को सुरक्षित निकालने के लिए वन विभाग की टीम द्वारा की गई साहसिक कार्रवाई ने पूरे गांव को सांसें थमा दी थीं। खाट और सीढ़ी के सहारे रेस्क्यू किए गए तेंदुए ने बाहर निकलते ही गांव की ओर रुख कर लिया और रेंजर अधिकारी बाल-बाल बचे।

लगातार घटनाएं – क्या जंगल असुरक्षित हो रहे हैं?

वन्य प्राणियों का बार-बार गांव की ओर आना और ग्रामीण क्षेत्रों में घायल अवस्था में मिलना एक बड़ी चिंता का विषय है। क्या जंगलों में अब उनके लिए पर्याप्त भोजन और सुरक्षा नहीं बची? या फिर मानवीय गतिविधियों ने उनके रहवास क्षेत्रों को प्रभावित कर दिया है?

भूषण साहू जैसे ग्रामीणों की जिम्मेदारी भरी पहल सराहनीय जरूर है, लेकिन वन विभाग को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी – ताकि चीतल और तेंदुए जैसे वन्यप्राणी सुरक्षित रह सकें, और गांव वाले डर में न जीएं।

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