माता लिंगेश्वरी : छत्तीसगढ़ का अनोखा मंदिर ,साल मे एक दिन ही खुलते है पट , जानिए क्यों है देश भर मे प्रसिद्ध
(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :-पहाड़ी पर गुफा में स्थित वर्ष में एक बार खुलने वाला माता लिंगेश्वरी मंदिर का पट इस वर्ष 2023 में हिंदू पंचाग के अनुसार भादृपद शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी 27 सितंबर बुधवार को खुलेंगा। यह निर्णय मंदिर सेवा समिति ने लिया है। देश भर के श्रद्धालुओं को माता लिंगेश्वरी के मंदिर खुलने का इन्तजार रहता है। छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर माता के दर्शन को पहुंचते हैं। कोंडागांव जिले के ग्राम झाटीबन अलोर के पहाड़ों के बीच एक गुफा में माता लिंगेश्वरी विराजमान है। खूबसूरत वादियों में लिंग स्वरूप में माता लिंगेश्वरी विराजमान है ।
नि:संतान दंपत्ति संतान की प्राप्ति के लिए आते है दर्शन करने
मंदिर मे सन्तान प्राप्ति के लिए भक्तों की ओर से माँ लिंगेश्वरी को खीरा प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। पुजारी की ओर से पूजा-अर्चना के बाद संतान चाहने वाली महिला के आंचल में प्रसाद के रूप में वही खीरा वापस दिया जाता है। उसी पहाड़ी पर बैठकर पति अपने नाखूनों से खीरे के दो भाग करता है। उसमें से एक भाग पति और दूसरा भाग पत्नी ग्रहण करती है। पुरानी मान्यताओ के अनुसार ऐसा करने वाले दंपती संतान सुख को अवश्य ही प्राप्त करते हैं।
पैरों के निशान देख कर जानते है भविष्य
माँ लिंगेश्वरी सेवा समिति झाटी बन आलोर के अनुसार प्रति वर्ष द्वार बंद करने के दौरान गुफा के अंदर रेत बिछाई जाती है मान्यताओ के अनुसार द्वार खोलने पर बिछी हुई रेत में जो पद चिन्ह जिस दिशा की ओर दिखाई देते हैं वह उस क्षेत्र के विकास, सुख शांति, खुशहाली और भय, आतंक, विवाद आदि को दशार्ते हैं। जैसे गाय, हाथी, शैर के पद चिन्ह क्षेत्र के धन-धान्य और खुशहाली को बताते हैं। वही तेंदुआ, बिल्ली, मनुष्य के पैरों के निशान वाद-विवाद, भय एवं आतंक की घटना बताते है ।
वर्ष भर श्रद्धालु करते है इंतेजार
मंदिर की मान्यता क्षेत्र सहित देश भर मे फैली हुई है मंदिर के पट खुलने का सभी श्रद्धालु वर्ष भर इंतजार करते है । मंदिर खुलने के दिन श्रद्धालुओ की लंबी कतारे लगती है । छत्तीसगढ़ के अलावा उड़ीसा सहित आसपास के राज्य के लोग यहाँ पहुचते है । वहाँ मेले का भी आयोजन किया जाता है ।
माँ लिंगेश्वरी मंदिर के पट खुलने के पहले से लेकर पट के बन्द होने तक सभी समाज के लोगों को अलग-अलग जिम्मेदारियां बंटी हुई हैं। यादव समाज मंदिर स्थल में पानी और सामग्री लाकर खीर और आटे का प्रसाद बनाकर चढाते हैं। वहीं माली फूल की व्यवस्था, कुम्हार समाज के द्वारा हंडी, दीया, धूप, आरती की व्यवस्था, अंधकुरी समाज का काम बाजा, मोहरी बजाना होता है। इसी तरह दूसरे समाज को भी अलग अलग जिम्मेदारी दी जाती है। समस्त समाजों के लोगों द्वारा अपने कार्यों का निर्वहन पूरी श्रद्धा पूर्वक किया जाता है, तभी माँ लिंगेश्वरी मेला सम्पूर्ण माना जाता है।
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