खबर पर प्रशासन ने लिया संज्ञान: अवैध रेत घाट पर पहुंची खनिज और राजस्व की टीम, लेकिन कार्रवाही……

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :नवापारा से लगे ग्राम तर्री में महानदी पर रेत माफियाओं की पैनी नजर गड़ी हुई है। इस गाँव से ये लोग नदी के रास्ते नवापारा सीमा पर पहुंच कर खुदाई कर रहे है। इसके लिए बाकायदा इन्होंने बेशरम मुरुम और रेत से रास्ते बनाए हुए है। इस रास्ते से बाहर निकलने इन्होंने नदी के तटबंध को भी तोड़ दिया है। 

छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज द्वारा राजिम क्षेत्र में अवैध रेत खनन पर कार्रवाई के बाद अब नवापारा घाट पर लग रहा जमावड़ा” शीर्षक से खबर प्रमुखता से प्रकाशित किया गया था। जिसके बाद प्रशासनिक और खनिज विभाग की टीम ने संज्ञान लेकर तर्री  रेत घाट पहुंची। टीम में नायब तहसीलदार सृजन सोनकर, खनिज सुपरवाइजर सुनीलदत्त शर्मा और पटवारी उपस्थित थे।

बताया जा रहा है खबर के प्रकाशन और टीम के आने की सूचना की खबर पर रात से ही गाड़ियां यहाँ से हटा दी गई थी। जिसके बाद  राजस्व और खनिज विभाग की संयुक्त टीम ने रेत माफियाओं द्वारा बनाए गए रेम को कई स्थानों पर तोड़ दिया है। हालाकिं यह कार्रवाही बहुत बड़ा कदम नहीं है क्यों की इसे बनाने में कोई ज्यादा समय नहीं लगने वाला है और ये गोरखधंधा फिर से चालू कर दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि तर्री में अवैध खनन को ग्राम पंचायत के कुछ जनप्रतिनिधियों का संरक्षण प्राप्त है। जिन्होंने इस अवैध कारोबार को यहाँ फलने-फूलने में मदद दी हुई है। रेत माफियाओं ने नदियों को भारी नुकसान तो पहुंचाया ही है साथ ही सरकारी राजस्व को करोड़ों रुपये का चूना भी लगा रहे है।

तटबंध को तोड़ दिया गया है

नदी से रेत का अवैध परिवहन करने बाकायदा मणिकंचन केंद्र के पास तटबंध को जेसीबी से काट कर रास्ता बनाया गया है। ये राजस्व की क्षति तो कर ही रहे है साथ साथ सरकारी संपत्ति को भी भारी नुकसान पहुंचाने का काम कर रहे है। इस रास्ते को भी वापस बंद करना चाहिए जिससे यह अवैध काम रुक सके।

समाज के लिए भी खतरा बन गए है 

अवैध खनन को लेकर प्रकाशित खबर ने प्रशासन को त्वरित कार्रवाई के लिए प्रेरित किया, जो दर्शाता है कि मीडिया की सक्रियता ने माफियाओं पर नकेल कसने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, यह सवाल भी उठता है कि ये  कार्रवाई पहले क्यों नहीं की गई, जो प्रशासन की समयबद्धता पर सवाल उठाता है। हाल के दिनों में, छत्तीसगढ़ में रेत माफियाओं द्वारा पत्रकारों और ग्रामीणों पर हुई हिंसा ने चिंता बढ़ा दी है। ये हमले दर्शाते हैं कि रेत माफिया न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि समाज के लिए भी खतरा बन गए हैं। 

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