खबर प्रकाशन के बाद जिला कलेक्टर का दौरा, लेकिन छिपा दी गई सच्चाई, दौरे से पहले मनभावन तथ्यों से सजा गांव

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) किशन सिन्हा :- गरियाबंद जिले में छुरा विकासखंड के धरमपुर में प्रधानमंत्री जनमन आवास योजना की क्रियान्वयन प्रक्रिया को लेकर दो विपरीत तस्वीरें सामने आई हैं। एक ओर जिला कलेक्टर बी.एस. उइके द्वारा खबर प्रशासन के कुछ दिन बाद गांव का दौरा कर हितग्राहियों से सीधा संवाद करते हुए मकानों की गुणवत्ता और संतुष्टि की जानकारी ली गई, वहीं दूसरी ओर मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में इस योजना के अंतर्गत भारी गड़बड़ियों और शोषण की गंभीर शिकायतें उजागर हुई हैं। यह योजना विशेष रूप से कमार जनजाति जैसे विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए है, जिसे गरियाबंद जिले में ज़मीन पर उतारा जा रहा है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, धरमपुर गांव में कुछ हितग्राहियों से ₹200 से ₹3,000 तक की अवैध वसूली की गई, जिसमें जियो ट्रैकिंग, चाय-पानी, व दौड़-भाग के नाम पर पैसे लिए जाने की बात सामने आई है। कुछ लाभार्थियों को यह तक जानकारी नहीं थी कि, उन्हें कितनी राशि मिली, कितनी किस्तें आईं और निर्माण में कितना खर्च हुआ। कई मकान अधूरे हैं, जिनमें खिड़कियाँ, दरवाज़े तक नहीं हैं। गांव के भोले भाले लोगों से अनाधिकारिक रूप से ठेकेदारी पद्धति के तहत निर्माण कार्य ठेकेदारों को सौंपा गया, जिस पर नियम विरुद्ध तरीके से लाभ उठाने के आरोप लगे हैं। स्थानीय आवास मित्रों की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं, जिनकी निगरानी में यह सब हुआ।

कलेक्टर निरीक्षण पर पहुंचे

हलाकिं जिला प्रशासन की ओर से जनपद सीईओ सतीश चंद्रवंशी ने सफाई देते हुए बताया कि “कलेक्टर स्वयं निरीक्षण पर पहुंचे थे ना कि प्रकाशित ख़बर के विषय में आये थे। वे घर-घर जाकर हितग्राहियों से बातचीत किये उन्होंने कहा कि कुछ मकान पूर्ण हो चुके हैं और कुछ निर्माणाधीन हैं। जिनके घर अभी नहीं बने हैं, उन्हें जल्द निर्माण के लिए प्रेरित किया जा रहा है।” इन तमाम तथ्यों से यही सवाल खड़ा होता है कि जिस गांव में भोले भाले लोगों के साथ विभिन्न बिंदुओं परनियम विरुद्ध कार्य हुए हैं, उसी गांव में जिले के कलेक्टर पहुंचते है और फिर भी पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता।  यह अपने आप में प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है, जबकि शासन की मंशा हर पात्र को आवास देने की है और इसमें कोई लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए है।

छिपा दी गई सच्चाई

यह निर्माणाधीन घर जहां मात्र दो कमरे

इन दोनों विरोधाभासी तस्वीरों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में कलेक्टर का निरीक्षण वास्तविक स्थिति को दर्शाता है, या फिर दौरे से पहले गांव में तैयारियां कर ली गई थीं? क्या जिन मकानों की गुणवत्ता पर सवाल है, उन्हें छिपा दिया गया? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या ठेकेदारों और आवास सहायकों द्वारा किए जा रहे कथित भ्रष्टाचार की प्रशासन को जानकारी है? यदि निरीक्षण के बाद भी कई हितग्राही योजना की बुनियादी जानकारी से वंचित हैं, तो यह सूचना व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है।

सूत्रों की माने तो खबर प्रशासन के बाद इस मामले में संलिप्त लोगों द्वारा पीड़ित गांव के भले भले लोगों को एकत्रित कर उन्हें सच्चाई छुपाने के लिए बरगलाया गया व लिखित में सब कुछ सही होने मनवाया गया है। 

मामला अब राजनीतिक और सामाजिक हलकों में भी चर्चा का विषय बन गया है, जहां पारदर्शी जांच की मांग उठ रही है। प्रधानमंत्री जनमन योजना यदि सही रूप में लागू हो, तो यह कमार जनजाति के लिए जीवन बदलने वाली पहल हो सकती है, लेकिन यदि इसमें भ्रष्टाचार ने सेंध लगाई गई है, तो यह उनके साथ अन्याय होगा।

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