आकर्षक रोशनी से जगमगाया राजिम का सीताबाड़ी : जानिए पूरा इतिहास

मौर्यकालीन सीताबाड़ी में खुदाई से मिल चुके है 2800 वर्ष पूर्व के अवशेष

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) राजिम :-छत्तीसगढ़ के प्रयागराज कहे जाने वाले राजिम स्थित सीताबाड़ी राजिम माघी पुन्नी मेला मे रंग बिरंगी रोशनी से जगमगा उठा है। यहां किये गए आकर्षक रोशनी लोगो का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पहली बार किए गए रंगीन रोशनी से पूरा सीताबाड़ी जगमगा रहा है । जिला प्रशासन गरियाबंद द्वारा यहां इस वर्ष विशेष लाइटिंग की है।उल्लेखनीय है कि सीताबाड़ी का ऐतिहासिक महत्व है। यहां पुरातत्व विभाग द्वारा पिछले वर्षों में खुदाई की गई है। इससे पहले पिछले वर्षो की खुदाई में राजिम में मौर्यकाल तक के अवशेष मिले थे। लेकिन हाल के वर्षों के उत्खनन में अब तक मौर्यकाल से पहले के भी दो तह मिल चुके हैं, जिन्हें आज से लगभग 2800 साल पूर्व का आंका जा रहा है।

 

वरिष्ठ पुरातत्व सलाहकार, डॉ. अरुण शर्मा के अनुसार सिरपुर के उत्खनन में करीब 2600 वर्ष पहले के अवशेष प्राप्त हुए थे। लेकिन राजिम में अभी तक उत्खनन के सबसे नीचे तह में करीब 2800 वर्ष पूर्व की तराशे हुए पत्थरों से निर्मित दीवारें मिल रही हैं, जिनसे बड़े-बड़े कमरे बनते हैं।
उसके ऊपर की तह में कम से कम 20 गुणा 20 मीटर में काले पत्थर की तह मिल रही है, जो एक बड़े-बड़े प्रांगण की ओर इंगित करती है।श्री
शर्मा ने बताया, मौर्यकाल से पहले के भी सभ्यता के अवशेष सीताबाड़ी में मिल रहे हैं। यहां सातवाहन काल का लाल पत्थर का स्तंभ भी मिला है, जिसमें शंखलिपि में लिखा हुआ है। यह छत्तीसगढ़ में दूसरा मौका है, जब शंखलिपि की लिखावट वाला स्तंभ मिला है। इससे पहले शंखलिपि की लिखावट मल्हार में मिली थी। इस स्तंभ (पिल्हर) के मिलने से यह साफ होता है कि यहां सातवाहन काल के अलावा एक बड़ा मंदिर था। डॉ. शर्मा के अनुसार सीताबाड़ी की खुदाई में पांच तहों से साफ प्रमाण मिलते हैं कि यहां कम से कम पांच बार भयंकर बाढ़ आ चुकी है। राजिम में पिछले समय हुई खुदाई से सीताबाड़ी में अब तक दो बड़े कमरे, लंबी दीवार, दो चूल्हे, साबूत पत्थर के बने स्तंभ, लोहे की कीलें, कीलों के ऐरो हेड और तांबे के पिन मिले हैं। खुदाई में टेराकोटा की सांड की प्रतिमा मिली है। श्री शर्मा ने कहा, सफेद पत्थर से निर्मित यह प्रतिमा चार इंच ऊंची और छह इंच लंबी है। इसकी खासियत है कि यह इस प्रतिमा के नीचे चक्का लगाने के लिए छेद हुआ है। यह प्रतिमा लगभग 1400 साल पूर्व की है।

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