साल में एक बार खुलता है मां निरई का दिव्य दरबार, अन्य वर्षों की तुलना में इस वर्ष भक्तों की लगी अपार भीड़
आदिकाल से चली आ रही परंपरा, भक्तों की मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) किशन सिन्हा :- गरियाबंद और धमतरी जिले के अंतिम छोर मोहेरा गांव के जंगल और पहाड़ के बीच एक खोल में विराजी निरई माता के प्रति क्षेत्र के श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा भक्ति है। मां निराई का दरबार वर्ष में केवल एक बार, चैत्र नवरात्र के प्रथम रविवार को ही भक्तों के लिए खुलता है। इस दिन यहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ते हैं। आस्था और विश्वास से ओत-प्रोत यह स्थल चमत्कारों से भरा हुआ है और भक्तों के बीच इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है।
इस बार 30 मार्च को चैत्र नवरात्र का पहला दिन रविवार को पड़ा, जिससे श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ गई। माता के दर्शन हेतु भक्तजन पैदल यात्रा कर पहाड़ों के बीच स्थित इस मंदिर में पहुंचे। मान्यता है कि माता के दरबार में बिना तेल और बाती के एक दिव्य ज्योति पूरे चैत्र माह में घूमती रहती है, जिसके दर्शन केवल सौभाग्यशाली लोगों को ही होते हैं। एक मान्यता यह भी है कि माता निरई स्वयं इस गुफा में साक्षात विराजमान हैं और उनके दरबार का द्वार साल के बाकी दिनों में बंद रहता है।
परंपरा और धार्मिक मान्यताएं
मां निरई की पूजा सदियों से देवी जातरा के रूप में मनाई जाती रही है। इस धार्मिक आयोजन में छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि ओडिशा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। भक्तजन अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यहां नारियल चढ़ाते हैं और मन्नत पूरी होने पर पुनः माता के दरबार में आकर भेंट चढ़ाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि माता निरई 21 बहनों में सबसे बड़ी और शक्तिशाली देवी हैं, जिनकी पूजा विशेष विधि-विधान से की जाती है।
यहां पूजा के दौरान लाल गुलाल, बंदन और अगरबत्ती का प्रयोग वर्जित है। भक्त केवल नारियल लेकर माता के दर्शन के लिए पहाड़ी पर पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में महिलाओं का प्रवेश निषेध है और न ही यहां का प्रसाद महिलाएं ग्रहण कर सकती हैं।
मंदिर की रहस्यमयी गुफा और घटता प्रवेश द्वार
मंदिर से जुड़े कई चमत्कारी किस्से भी भक्तों के बीच प्रचलित हैं। पुजारी उत्तम ध्रुव ने बताया कि पहले इस गुफा का प्रवेश द्वार बहुत विशाल था, लेकिन समय के साथ यह छोटा होता गया। इस बदलाव को भक्तजन कलयुग का प्रभाव मानते हैं। पूर्व में माता अपने भक्तों से चढ़ावा स्वयं स्वीकार करती थीं, लेकिन अब यह परंपरा धीरे-धीरे बदल चुकी है।
भक्तों के अनुसार, मां निराई का दरबार पहाड़ों के बीच स्थित होने के कारण यहां पहुंचने के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। जब पुजारी मंदिर में प्रवेश करते हैं, तो भक्तजन उनके पीछे-पीछे दौड़ते हैं और एक विशेष प्रक्रिया के तहत माता की आराधना की जाती है। माता की कृपा पाने के लिए भक्तजन पूरी श्रद्धा से नियमों का पालन करते हैं।
चुनावी वर्ष के कारण उमड़ा जनसैलाब
इस वर्ष विशेष रूप से माता के दरबार में भक्तों की भीड़ अधिक रही। इसका एक कारण यह भी रहा कि इस साल नगरीय और पंचायत चुनाव सम्पन्न हुए है। मान्यता के अनुसार, कई राजनेता और प्रत्याशी माता के दरबार में अपनी जीत की मन्नत मांगने आते हैं और जब उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं, तो वे माता के समक्ष अपने मन्नत अनुसार चढ़ावा अर्पित करते हैं। इसी कारण इस बार माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा।
स्थानीय प्रशासन ने भी इस विशाल भीड़ को नियंत्रित करने के लिए विशेष तैयारियां की थीं। मां निरई सेवा समिति और ग्राम पंचायत ने सुरक्षा और व्यवस्था सुनिश्चित करने में प्रशासन का पूरा सहयोग किया। धमतरी और गरियाबंद जिले की पुलिस ने सीमा पर मुस्तैदी बनाए रखी, ताकि किसी भी प्रकार की अव्यवस्था न हो।
जनसैलाब और ऐतिहासिक आयोजन
स्थानीय निवासियों के अनुसार, इस बार भक्तों की भीड़ अभूतपूर्व रही। सुबह से ही श्रद्धालुओं का रेला मंदिर की ओर बढ़ता गया और देर शाम तक यह सिलसिला जारी रहा। दर्शन के लिए सड़कों पर लोगों की कतारें लगी रहीं और मंदिर परिसर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी।
यह अपार भीड़ दर्शाता है कि मां निरई की महिमा अपार है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तजन हर साल बेसब्री से इस दिन की प्रतीक्षा करते हैं। यह दिव्य दरबार न केवल श्रद्धा और आस्था का केंद्र है, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।
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