पुष्पा मॉडल पर तस्करी: JCB से बना दी कई किमी की अवैध सड़क, प्रशासन की नाक के नीचे रोज़ हो रहा खेल

(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) गरियाबंद :– फिल्म पुष्पा में तस्करी का जो जाल पर्दे पर रचा गया, वह अब हकीकत में गरियाबंद जिले में भी देखने को मिल रहा है। फिल्म से सीख कर तस्करों ने ऐसा “पुष्पा मॉडल” तैयार किया है, जिसमें न नियमों की परवाह है, न सीमाओं की। नालों–नदियों को पार कर JCB से अवैध सड़क बनाकर धान छत्तीसगढ़ में खपाया जा रहा है।
गरियाबंद जिले में जैसे ही सरकार ने समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की घोषणा कई, वैसे ही धान तस्करों का नेटवर्क पूरी तरह सक्रिय हो गया। हर साल की तरह इस बार भी सरकारी व्यवस्था की कमजोर कड़ियों को निशाना बनाते हुए उड़ीसा का धान छत्तीसगढ़ की मंडियों तक पहुंचाने का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार तस्करों ने ऐसे-ऐसे नए रास्ते और तरीके अपनाए हैं, जिन्हें देखकर प्रशासन भी हैरान है।
गरियाबंद जिला वैसे तो धान उत्पादन के लिए जाना जाता है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि देवभोग और अमली पदर क्षेत्र में प्रति एकड़ औसतन उत्पादन करीब 15 कुंटल के आसपास ही रहता है, जबकि सरकार 21 कुंटल प्रति एकड़ तक धान खरीद रही है। इसी अंतर ने तस्करी के लिए सबसे बड़ा दरवाजा खोल दिया है। कई किसान अपनी वास्तविक उपज बेचने के बाद शेष बची मात्रा को पूरा करने के लिए उड़ीसा से धान मंगाकर अपने ही खाते में मंडी में खपा रहे हैं। इस पूरे खेल में मंडी के कुछ कर्मचारियों की भूमिका भी लगातार सवालों के घेरे में है, जिनकी कथित मिलीभगत के बिना यह खेल संभव नहीं माना जा सकता।
शासन की सख्ती से तस्कर पस्त
शासन द्वारा गरियाबंद जिले के उड़ीसा–छत्तीसगढ़ सीमा से जुड़े लगभग सभी प्रमुख रास्तों पर सख्त नाकाबंदी की गई है। जगह-जगह चेक पोस्ट बनाए गए हैं, कर्मचारी तैनात हैं और वाहनों की जांच की जा रही है। कई क्विंटल धान पकड़े भी गए है। शासन की कड़ाई से धान तस्कर पस्त भी है। फिर तस्करों ने ऐसे वैकल्पिक रास्ते खोज निकाले हैं, जिनकी जानकारी न तो प्रशासन को थी और न ही अब तक किसी एजेंसी ने वहां निगरानी की थी।

जिले के हल्दीघाटी क्षेत्र में ऐसा रास्ता बनाया गया है, जो कभी इतना जर्जर था कि उस पर पैदल चलना भी मुश्किल था, आज चार पहिया वाहनों के लिए पूरी तरह तैयार कर दिया गया है। हैरानी की बात यह है कि यह सड़क किसी सरकारी योजना से नहीं, बल्कि खुद धान तस्करों ने JCB मशीन लगाकर तैयार की है। महज 5 से 7 दिनों में तस्करों ने जंगल, पहाड़ी और नालों के बीच से ऐसी सड़क बना दी, जिस पर अब पिकअप, ट्रैक्टर और अन्य चार पहिया वाहन आराम से निकल रहे हैं।
रात भर चलता है धान खपाने का काम

सूत्रों के मिली जानकारी के अनुसार, दिन के समय उड़ीसा सीमा के डाबरी गांव के एक घर के सामने में धान को डंप किया जाता है जहां ग्राउंड रिपोर्टिंग करते समय लगभग 1000 पैकेट धाम डंपिंग था। शाम करीब 5 बजे के बाद तस्करी का असली खेल शुरू होता है। पूरी रात इसी अवैध सड़क के जरिए पिकअप और ट्रैक्टरों से धान छत्तीसगढ़ सीमा में दाखिल कराया जाता है। यह धान सीधे किसानों के घरों तक और कई मामलों में बिना किसी रोक-टोक के मंडियों तक पहुंचा दिया जाता है।
यह पूरा नजारा किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था। जिस तरह ‘पुष्पा’ फिल्म में चंदन की तस्करी जंगल, नदियों और नालों को पार कर होती है, ठीक उसी अंदाज में धान तस्कर भी लगभग 18 छोटी-बड़ी नालों और नदीनुमा रास्तों को पार कर उड़ीसा का धान छत्तीसगढ़ में पहुंचा रहे हैं। फर्क बस इतना है कि यहां चंदन नहीं, बल्कि सरकारी खजाने को चपत लगाने वाला धान है।
जिम्मेदारी किसकी ?
फिलहाल इतना तय है कि धान तस्करी का यह खेल सिर्फ कानून-व्यवस्था को चुनौती नहीं, बल्कि सरकारी खजाने को हजारों करोड़ के नुकसान की खुली साजिश है – जिस पर अब सिर्फ कार्रवाई नहीं, बल्कि जवाबदेही भी तय करनी होगी।

जहां वन विभाग की जामीन पर सड़क बनाने में शासन को भी कई तरह के नियमों से गुजरना पड़ता है वहाँ जिस तरह तस्करों ने प्रशासन की आंखों में धूल झोंकते हुए JCB से सड़क बना ली, वह पूरे सिस्टम पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। जहां सरकार खुद सड़क नहीं बना पाई, तो तस्करों ने कैसे बना ली? और अगर यह सब प्रशासन की नाक के नीचे हुआ, तो जिम्मेदारी किसकी है?
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