गरियाबंद के इस गांव में धधकते अंगारों पर चलते हैं ग्रामीण : 70 सालों से चला रहा है रिवाज
(छत्तीसगढ़ प्रयाग न्यूज) :- गरियाबंद जिले का एक ऐसा गांव जहां आज भी ग्रामीण धधकते अंगारे पर चलते है। ये रिवाज पिछले 70 सालों से चला आ रहा है। जिले के गोहरापदर में होलिका दहन के बाद लोग नंगे पांव धधकते अंगार पर चलते हैं। लोगों का मानना है कि होलिका दहन के बाद बने अंगार पर चलने से शारीरिक कष्ट दूर होते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही इस परंपरा को लोग खुशी से आज भी स्वीकार करते हैं।
बीमारियां होती है दूर
स्थानीय लोगों का कहना है कि नंगे पांव अंगार पर चलने के बाद भी किसी का कुछ नुकसान नहीं होता। उनका मानना है कि इससे बीमारियां तो दूर होती ही हैं, साथ ही गांव-घर में सुख-समृद्धि भी आती है। ग्रामीणों ने बताया कि कोई जरूरी नहीं है कि हर कोई धधकते अंगार पर चले ही, अगर किसी की ऐसा करने की इच्छा नहीं है, तो उस पर कोई दबाव नहीं बनाया जाता है। होलिका दहन के बाद लोग देवी डोकरीबूढ़ी का नाम लेकर गांव की सुख-समृद्धि की प्रार्थना मन में लेकर अंगार पर चलते हैं।
गांव में नहीं आती अशांति
लोगों की इस बात पर बहुत आस्था है कि इस परंपरा को मानने से गांव में न तो अशांति आती है और न ही गांव में किसी संक्रामक बीमारी का प्रकोप होता है। लोग होलिका दहन के पहले गांव की देवी माता डोकरीबूढ़ी को याद करते हैं। इसके बाद पूजा-पाठ होने के बाद होलिका दहन किया जाता है। इसके बाद सबसे पहले पुजारी जलते हुए अंगार को नंगे पांव पार करते हैं, इसके बाद अन्य ग्रामीण नंगे पांव गांव की देवी का नाम लेते हुए इसे पार कर जाते हैं।
होलिका दहन में लकड़ियों और कंडे का करते है इस्तेमाल
होलिका दहन में लकड़ियों और कंडे का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद ग्रामीण राख के ठंडा हो जाने पर उसे अपने घर ले जाते हैं। उसका टीका भी लगाते हैं। इसके बाद रात में ही गाजे-बाजे के साथ घर-घर जाकर लोगों को होली की बधाई देते हैं।